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CJI BR Gavai: न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई बने भारत के नए प्रधान न्यायाधीश; राष्ट्रपति मुर्मू ने दिलाई शपथ

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BIG NEWS OF INDIA/DAILY INDIATIMES/14.MAY.2025 WEDNESDAY

एक दिन तुम CJI बनोगे लेकिन…’, पिता ने ऐसा क्या कहा कि जस्टिस गवई आर्किटेक्ट का सपना छोड़ बन गए वकील

BR Gavai Next CJI: भारत के 51वें मुख्य न्यायाधीश (CJI) के रूप में जस्टिस बी.आर. गवई (Justice B.R. Gavai) की नियुक्ति ने न केवल उनके कठिन परिश्रम और समर्पण को रेखांकित किया है, बल्कि उनके जीवन की प्रेरणादायक यात्रा को भी सामने लाया है। जस्टिस गवई, जिन्हें शुरू में आर्किटेक्चर में रुचि थी, अपने पिता की प्रेरणा और एक खास सलाह के कारण वकालत की राह पर चले, जिसने उनकी जिंदगी को नया मोड़ दिया। आइए, जानते हैं कि उनके पिता ने ऐसा क्या कहा, जिसने उन्हें आर्किटेक्ट से वकील और फिर देश के शीर्ष न्यायाधीश तक का सफर तय करने के लिए प्रेरित किया।आर्किटेक्चर से वकालत तक का सफरजस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई का जन्म 24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। उनके पिता, रामकृष्ण गवई, एक वकील और सामाजिक कार्यकर्ता थे, जिन्होंने अपने बेटे को हमेशा बड़े सपने देखने और समाज के लिए कुछ बड़ा करने की प्रेरणा दी। जस्टिस गवई ने शुरू में आर्किटेक्चर में रुचि दिखाई और इस क्षेत्र में करियर बनाने का सपना देखा। हालांकि, उनके पिता ने उन्हें एक ऐसी सलाह दी, जिसने उनकी जिंदगी की दिशा बदल दी।क्या बोले पिताजस्टिस गवई ने एक साक्षात्कार में बताया कि उनके पिता ने उनसे कहा, “एक दिन तुम CJI बनोगे, लेकिन इसके लिए तुम्हें मेहनत, ईमानदारी और समाज के प्रति जिम्मेदारी के रास्ते पर चलना होगा। वकालत एक ऐसा पेशा है, जहां तुम न सिर्फ अपनी पहचान बना सकते हो, बल्कि समाज के कमजोर वर्गों को न्याय भी दिला सकते हो।” इस सलाह ने युवा भूषण को गहरे तक प्रभावित किया। उन्होंने आर्किटेक्चर के सपने को छोड़कर कानून की पढ़ाई शुरू की और 1980 में नागपुर विश्वविद्यालय से LLB की डिग्री हासिल की।पिता की सलाह और सामाजिक जिम्मेदारीजस्टिस गवई के पिता रामकृष्ण गवई न केवल एक वकील थे, बल्कि दलित समुदाय के उत्थान के लिए काम करने वाले एक प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता भी थे। उन्होंने अपने बेटे को हमेशा यह सिखाया कि कानून का पेशा सिर्फ पैसा कमाने का जरिया नहीं, बल्कि समाज में बदलाव लाने का एक शक्तिशाली हथियार है। पिता की इस सीख ने जस्टिस गवई को न केवल वकालत में उत्कृष्टता हासिल करने के लिए प्रेरित किया, बल्कि उन्हें सामाजिक न्याय के प्रति समर्पित भी बनाया।

बॉम्बे हाई कोर्ट से शुरुआतउनके पिता ने यह भी कहा था, “CJI बनना कोई छोटी बात नहीं है, लेकिन इसके लिए तुम्हें अपने सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं करना होगा।” इस सलाह को जस्टिस गवई ने अपने जीवन का मूलमंत्र बनाया। उन्होंने वकालत शुरू की और 1987 में बॉम्बे हाई कोर्ट में प्रैक्टिस शुरू की, जहां उन्होंने आपराधिक और संवैधानिक मामलों में अपनी विशेषज्ञता साबित की।6 महीने का रहेगा कार्यकालजस्टिस गवई, जो सुप्रीम कोर्ट के सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश थे, अब देश की सर्वोच्च न्यायिक प्रणाली का नेतृत्व करेंगे। उनका कार्यकाल छह महीने का होगा, जो 23 नवंबर 2025 को उनकी 65 वर्ष की आयु पूरी होने पर समाप्त हो जाएगा। इस दौरान, उनकी भूमिका संवैधानिक और सामाजिक न्याय से संबंधित महत्वपूर्ण मामलों में दिशा प्रदान करने की होगी, जैसा कि उन्होंने अपने करियर में पहले भी किया है। उनके करियर में नोटबंदी, अनुच्छेद 370 और इलेक्टोरल बॉन्ड जैसे ऐतिहासिक फैसलों में योगदान रहा है, जो उनकी कानूनी दृष्टि और निष्पक्षता को दर्शाता है। छह महीने के इस संक्षिप्त कार्यकाल में, जस्टिस गवई के समक्ष न्यायिक प्रणाली में स्थिरता और निरंतरता बनाए रखने की चुनौती होगी। उनकी नियुक्ति को न्यायिक क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है, जो भारत के विविधतापूर्ण समाज में समानता और न्याय के मूल्यों को और सशक्त करेगा।

फर्श से अर्श तक की यात्राजस्टिस गवई का करियर एक प्रेरणादायक कहानी है। 2003 में उन्हें बॉम्बे हाई कोर्ट का जज नियुक्त किया गया। 2019 में, वे सुप्रीम कोर्ट के जज बने और अब, 14 मई 2025 को, उन्होंने भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली। उनकी इस उपलब्धि पर उनकी मां ने NDTV को दिए एक साक्षात्कार में कहा, “मेरे बेटे को न्याय के रास्ते से कोई डिगा नहीं सकता। उसने हमेशा अपने पिता की सीख को अपनाया और मेहनत से यह मुकाम हासिल किया।”समाज के लिए प्रेरणाजस्टिस गवई की कहानी यह साबित करती है कि सही मार्गदर्शन, मेहनत और सिद्धांतों के प्रति निष्ठा किसी भी व्यक्ति को असाधारण ऊंचाइयों तक ले जा सकती है। उनके पिता की सलाह न केवल उनके लिए, बल्कि हर उस युवा के लिए प्रेरणा है, जो अपने सपनों को सच करना चाहता है। जैसा कि एक ट्वीट में कहा गया, “जस्टिस गवई की यात्रा फर्श से अर्श तक की है। उनकी कहानी हर भारतीय को गर्व महसूस कराती है।” जस्टिस गवई अब देश की सबसे बड़ी अदालत के मुखिया के रूप में नई जिम्मेदारियां संभाल रहे हैं। उनकी यह यात्रा न केवल उनके पिता के सपनों को पूरा करती है, बल्कि लाखों लोगों के लिए एक मिसाल भी कायम करती है।


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