रवि शर्मा/DAILY INDIATIMES/09 अगस्त 2025/BHARATPUR NEWS
भरतपुर: स्टे के बावजूद मकान तोड़ा, 8 साल बाद कोर्ट के आदेश से नगम निगम में मच गई खलबलीभरतपुर नगर निगम की लापरवाही उजागर हुई, जहां कोर्ट के आदेश की अवमानना करने पर आयुक्त की सरकारी गाड़ी समेत तीन वाहन कुर्क किए गए। 2017 में स्टे के बावजूद एक व्यक्ति का घर तोड़ा गया था, और कोर्ट के बार-बार कहने पर भी मुआवजा न
भरतपुर: राजस्थान के भरतपुर में नगर निगम की लापरवाही ने उसकी साख पर बड़ा दाग लगा दिया है। दरअसल, कोर्ट की अवमानना करने के चलते मंगलवार को खुद नगर निगम आयुक्त की सरकारी गाड़ी समेत तीन वाहन कुर्क कर दिए गए। यह पूरा मामला एक आम आदमी के साथ हुई नाइंसाफी से जुड़ा है, जिसका घर निगम ने स्टे आदेश के बावजूद ढहा दिया था और फिर कोर्ट के बार-बार कहने पर भी मुआवजा या मकान निर्माण की सुध नहीं ली।
सरकारी गाड़ियों पर चिपके कुर्की के नोटिसभरतपुर के वरिष्ठ सिविल न्यायाधीश एवं मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत ने नगर निगम की तीन गाड़ियों को कुर्क करने का आदेश दे दिया। आदेश मिलते ही कोर्ट के सेल अमीन विकास कुमार की अगुवाई में कार्रवाई शुरू हुई और नगर निगम पहुंचकर तीन वाहनों पर कुर्की के नोटिस चस्पा कर दिए गए। इस दौरान अफसरों के हाथ-पांव फूल गए।
जानिए क्या है पूरा मामला?
मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक, पूरन सिंह नाम के व्यक्ति का मकान कुम्हेर गेट क्षेत्र में स्थित था। वर्ष 2017 में जब भरतपुर में सीएफसीडी (सिटी फ्लड कंट्रोल ड्रेन) परियोजना के तहत निर्माण हो रहा था, तब पूरण सिंह का मकान भी स्टे के बावजूद निगम ने तोड़ दिया। पीडि़त ने न्याय के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया। पांच साल तक चला केस, और 2022 में कोर्ट ने नगर निगम को आदेश दिया कि पूरण सिंह का मकान बनवाकर दो या उचित मुआवजा दिया जाए। लेकिन अफसरों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया और बार-बार नोटिस भेजे जाने के बावजूद आदेश की पालना नहीं कीअफसरशाही की टालमटोल पर कोर्ट का सख्त रुखकोर्ट को जब लगा कि नगर निगम टालमटोल कर रहा है, तो आखिरकार 6 अगस्त को नगर निगम की तीन गाड़ियों को कुर्क करने के आदेश सुना दिए। इससे प्रशासन में हड़कंप मच गया। नगर निगम आयुक्त श्रवण कुमार विश्नोई ने सफाई दी कि यह मामला उनके कार्यकाल से पहले, साल 2017 का है और 2022 में तत्कालीन आयुक्त कमल राम मीणा के खिलाफ कोर्ट ने हर्जाना वसूलने का आदेश दिया था। लेकिन पूरण सिंह को अब तक न मुआवजा मिला, न मकान का पुनर्निर्माण हुआ। अब सवाल यह उठता है कि एक आम नागरिक को उसका हक दिलवाने के लिए कोर्ट को क्यों प्रशासन की गाड़ियां कुर्क करनी पड़ीं? क्या यही है सुशासन का चेहरा? भरतपुर की ये घटना पूरे प्रदेश के प्रशासनिक तंत्र के लिए एक बड़ा सबक है।